मणिपुर में राजनीतिक संकट गहरा गया है और सूत्रों के अनुसार, यदि अगले 10 दिनों में राज्य में नई सरकार नहीं बनती, तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने रविवार को अपने इस्तीफे की घोषणा की, जिसके बाद राज्य में सरकार गठन की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई है। मुख्यमंत्री का इस्तीफा जातीय हिंसा के लगभग दो साल बाद आया है, जिसके कारण उनकी सरकार पर लगातार आलोचना हो रही थी। हिंसा के बाद कई मुद्दों पर उनकी सरकार पर सवाल उठाए गए थे, हालांकि उन्होंने स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास किए थे।
आर्टिकल में –
बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद अब राज्य में सरकार का गठन एक चुनौती बन गया है। ऐसे में अगर अगले दस दिनों में नई सरकार का गठन नहीं होता है तो राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। यह स्थिति मणिपुर में लगातार बिगड़ती राजनीतिक स्थिति को लेकर चिंता का कारण बन गई है।
प्रियंका गांधी ने कहा, मुख्यमंत्री को बहुत पहले इस्तीफा देना चाहिए था
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने सोमवार को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें यह कदम बहुत पहले उठाना चाहिए था। प्रियंका ने कहा, “मणिपुर में दो साल से हिंसा चल रही थी, और यह स्थिति काफी समय से लंबित थी।” उन्होंने बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद कहा कि यह राज्य की स्थिति के सुधार के लिए जरूरी था। प्रियंका गांधी ने आरोप लगाया कि राज्य में सरकार की नाकामी के कारण मणिपुर में हिंसा जारी रही और मुख्यमंत्री को यह कदम बहुत पहले उठाना चाहिए था।
मणिपुर में हिंसा पर कांग्रेस और द्रमुक की कड़ी आलोचना
कांग्रेस और द्रमुक ने मणिपुर में जारी हिंसा के लिए भाजपा सरकार और केंद्र को जिम्मेदार ठहराया है। द्रमुक नेता कनिमोई ने आरोप लगाया कि मणिपुर में ‘‘फासीवादी राजनीति’’ हो रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को इस हिंसा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण 220 से अधिक लोग मारे गए और 60,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए।
कनिमोई ने यह भी आरोप लगाया कि सरकारी राहत शिविरों में लोगों को अगवा किया गया और उनकी हत्या की गई, साथ ही महिलाओं का यौन उत्पीड़न भी किया गया। उन्होंने कहा कि ये अत्याचार सरकार की ‘‘समर्थन और उदासीनता’’ के कारण हुए, और केंद्र सरकार और राज्य के मुख्यमंत्री ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए। उन्होंने मांग की कि मोदी और शाह को इस हिंसा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
राष्ट्रपति शासन – मणिपुर के लिए आगे का रास्ता
राज्य में अब सरकार गठन की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई है, और यदि अगले कुछ दिनों में कोई निर्णय नहीं लिया जाता, तो केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन लगाने का विकल्प अपनाना पड़ सकता है। इस बीच, मणिपुर में राजनीतिक अस्थिरता और जातीय हिंसा की स्थिति पर भी कड़ी निगरानी रखी जा रही है। मणिपुर की सरकार के लिए जल्द से जल्द समाधान तलाशना जरूरी हो गया है, ताकि राज्य में शांति और सुरक्षा बहाल की जा सके और नागरिकों को राहत मिल सके।
यह संकट मणिपुर के राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, और इसका प्रभाव राज्य की भविष्यवाणी और राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ सकता है।