संजय रॉय को उम्रभर की सजा: आरजी कर मामले में न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

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Karela Bharta

Kinnauri Shawl

आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बलात्कार और हत्या करने के लिए संजय रॉय को उम्रभर की सजा। मौत की सजा पर न्यायमूर्ति अनिर्बान दास ने संवेदनशील कारण दिए, और मामले को “रियरस्ट ऑफ़ द रियर” अपराध नहीं माना। सुरक्षा खामियों और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही पर भी सख्त टिप्पणी की गई।

आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई घिनौनी घटना:

2024 में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक पोस्ट-ग्रेजुएट डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। डॉक्टर की बेरहमी से हत्या के बाद संजय रॉय को दोषी ठहराया गया और उन्हें उम्रभर की सजा सुनाई गई। हालांकि, अदालत ने मृत्युदंड देने के बजाय उम्रभर की सजा का आदेश दिया।

मृत्युदंड क्यों नहीं दिया गया: न्यायमूर्ति दास का स्पष्टीकरण

न्यायमूर्ति अनिर्बान दास ने अपने फैसले में साफ किया कि इस मामले में मौत की सजा उचित नहीं है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “सजा और अपराध के बीच समानुपातिकता” का सिद्धांत लागू करते हुए और अपराधी के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए, यह मामला “रियरस्ट ऑफ़ द रियर” नहीं था, जिसमें मृत्युदंड दिया जा सके।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को हवाले देते हुए यह भी कहा कि “मौत की सजा केवल तब दी जा सकती है जब अपराध अत्यंत गंभीर हो और समाज के अंतर्मन को इतनी गहरी चोट पहुंचे कि यह मृत्युदंड की मांग करता हो।” इस स्थिति में, मृत्युदंड देने से सजा का निर्णय उचित नहीं होता।

क्रूरता और अपराध की जघन्यता:

अदालत ने संजय रॉय द्वारा की गई घटना को “क्रूर” और “भयानक” करार दिया। अपराधी द्वारा पीड़िता को मैन्युअल सट्रैंगुलेशन (गला घोंटने) और स्मोथरिंग (सांसें बंद करना) से मारा गया था। इसके अलावा, बलात्कार की घटनाओं का उल्लेख भी किया गया था। न्यायमूर्ति ने कहा कि यह अपराध अत्यंत अमानवीय और बर्बर था, और यह पीड़िता के साथ विश्वासघात को दर्शाता है।

सुरक्षा खामियां और प्रशासन की लापरवाही:

अदालत ने आरजी कर अस्पताल में सुरक्षा खामियों की बात की। गवाहों ने यह बताया कि एक बाहरी व्यक्ति ने घटनास्थल पर प्रवेश किया और बाद में उसे अस्पताल अधिकारियों ने बिना रोक-टोक के बाहर किया। एक गवाह ने यहां तक कहा कि उसने पहले भी अस्पताल में सुरक्षा संबंधी समस्या उठाई थी, लेकिन अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। अदालत ने अस्पताल के अधिकारियों की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार की कड़ी आलोचना की, जिसके कारण ऐसी जघन्य घटना घटी।

अस्पताल प्रशासन की दोषी नीतियां:

न्यायमूर्ति ने अस्पताल प्रशासन की नीतियों की भी जांच की। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को पीड़िता की मौत के बारे में पुलिस को सूचित करने के लिए तत्काल कदम उठाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह तथ्य अदालत के लिए महत्वपूर्ण था और यह दिखाता है कि अस्पताल प्रशासन ने जानबूझकर मामले को दबाने की कोशिश की।

मूल्यांकन: मौत की सजा पर विचार

अदालत ने मामले की जांच करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि संजय रॉय ने सशक्त प्रमाण और विस्तृत परिस्थितियों के बाद बलात्कार और हत्या का अपराध किया था। हालांकि, मामले के तीव्रता और हिंसा के बावजूद, यह “रियरस्ट ऑफ़ द रियर” के वर्ग में नहीं आता था, जिसके चलते मृत्युदंड नहीं दिया जा सका।

साक्ष्य और संजय रॉय का स्वीकारोक्ति:

सांजय रॉय की हत्या और बलात्कार की घटनाओं से जुड़ी साक्ष्य पुलिस के पास मौजूद थे। घटना के बाद, अस्पताल की सीसीटीवी फुटेज, डीएनए मैचिंग, मोबाइल टावर लोकेशन और आरोपी की खुद की स्वीकारोक्ति से यह पुष्टि हो गई कि संजय रॉय ने अपराध किया था। अदालत ने इन साक्ष्यों की पुष्टि की और फैसले में इसे महत्वपूर्ण रूप से शामिल किया।

अदालत के फैसले ने केवल एक अपराधी को सजा दी, बल्कि अस्पताल प्रशासन की खामियों को उजागर भी किया, जिसने ऐसे संवेदनशील मामले में अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया। न्यायालय का यह निर्णय एक उदाहरण बनकर उभरता है कि कैसे कानून और न्याय का पालन किया जाता है, और अपराधियों के लिए सजा का फैसला जिम्मेदार और न्यायसंगत तरीके से लिया जाता है।

– कार्तिक

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