भारत की सब्सक्रिप्शन इकोनॉमी में डार्क पैटर्न्स: उपभोक्ता अधिकारों और डिजिटल विश्वास के लिए खतरा

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नई दिल्ली, 4 जून

भारत की डिजिटल सब्सक्रिप्शन इकोनॉमी ने हाल के वर्षों में जबरदस्त वृद्धि देखी है। Kuku FM, Stage, Seekho जैसे प्लेटफॉर्म्स देशभर में लाखों यूज़र्स को आकर्षित कर रहे हैं। लेकिन इस तेज़ विकास के साथ एक गंभीर समस्या भी सामने आई है—ऐसी धोखाधड़ी भरी रणनीतियाँ, जो उपभोक्ता विश्वास को कमजोर करती हैं और निष्पक्ष डिजिटल कॉमर्स के सिद्धांतों को चुनौती देती हैं।

बढ़ती शिकायतें: छुपे शुल्क और जटिल रद्दीकरण

कई यूज़र्स ने ऐसे भ्रामक बिलिंग प्रैक्टिस की शिकायत की है, जिनसे अनजाने या बिना अनुमति के भुगतान कट जाते हैं। इंडस्ट्री के कुछ लोग इन घटनाओं को अपवाद बताते हैं, लेकिन खासकर टियर-2 और टियर-3 शहरों के उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया बताती है कि यह समस्या काफी व्यापक है।

इन क्षेत्रों के उपभोक्ता, जिनकी डिजिटल साक्षरता सीमित है, वे खासतौर पर भ्रामक सब्सक्रिप्शन मॉडल और अस्पष्ट रद्दीकरण प्रक्रियाओं के शिकार होते हैं।

ट्रायल ऑफर के नाम पर चालाकी

सबसे आम तरीका है नाममात्र की कीमत (₹1 या ₹2) पर ट्रायल सब्सक्रिप्शन देना। ट्रायल खत्म होते ही यूज़र्स को बिना स्पष्ट जानकारी दिए ऑटोमैटिकली पेड प्लान (₹100 से ₹699 प्रति माह) में बदल दिया जाता है।

कई बार यह ऑटो-रिन्युअल साइन-अप के समय साफ़-साफ़ नहीं बताया जाता, जिससे यूज़र्स को तब तक पता नहीं चलता जब तक उनके खाते से पैसे कट नहीं जाते।

रद्दीकरण की जटिल प्रक्रिया

सबसे बड़ी समस्या सब्सक्रिप्शन रद्द करने में आती है। कई प्लेटफॉर्म जानबूझकर रद्दीकरण को मुश्किल बनाते हैं। यूज़र्स को लगता है कि उन्होंने ऐप से सब्सक्रिप्शन कैंसल कर दिया, लेकिन UPI या थर्ड-पार्टी गेटवे के जरिए ऑटोमेटिक पेमेंट चालू रहता है।

आसान इन-ऐप कैंसलेशन की बजाय, यूज़र्स को जटिल बाहरी सिस्टम्स में भेजा जाता है, जिससे भ्रम और परेशानी बढ़ती है।

छोटे शहरों के उपभोक्ता सबसे ज्यादा प्रभावित

ये डार्क पैटर्न्स खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के यूज़र्स को प्रभावित करते हैं, जहां डिजिटल साक्षरता कम है। नतीजतन, कई उपभोक्ता उन सेवाओं के लिए भुगतान करते रहते हैं, जिनका वे उपयोग नहीं कर रहे या करने का इरादा नहीं रखते।

पारदर्शिता की कमी और फर्जी सब्सक्राइबर आंकड़े

इन प्रैक्टिसेज़ से न सिर्फ उपभोक्ता बल्कि निवेशक और रेगुलेटर्स भी गुमराह होते हैं। अगर बड़ी संख्या में सब्सक्राइबर असल में निष्क्रिय हैं या अनजाने में पैसे दे रहे हैं, तो प्लेटफॉर्म्स के आंकड़े कृत्रिम रूप से बढ़े हुए दिखते हैं।

उपभोक्ताओं की बढ़ती नाराज़गी

रेडिट, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और ऐप स्टोर्स पर लगातार शिकायतें आ रही हैं—छुपे शुल्क, अस्पष्ट शर्तें, और बेवजह जटिल रद्दीकरण प्रक्रिया को लेकर। यह दिखाता है कि समस्या अपवाद नहीं, बल्कि आम है।

नियामक हस्तक्षेप की ज़रूरत

मौजूदा कानूनी ढांचा डिजिटल सब्सक्रिप्शन मॉडल और इन डार्क पैटर्न्स को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा और डिजिटल विश्वास बहाल करने के लिए कड़े नियमों और पारदर्शिता की सख्त ज़रूरत है।

(डिस्क्लेमर: उपरोक्त प्रेस विज्ञप्ति PNN के साथ एक व्यवस्था के तहत आई है और पीटीआई इसकी संपादकीय जिम्मेदारी नहीं लेता।)

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