कुंभ मेला को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक मेले में से एक माना जाता है। यह मेला 30 से 45 दिन तक चलता है और हिंदू धर्म में इसका अत्यधिक महत्व है। महाकुंभ मेला हर 12 वर्षों में हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है, जिसमें प्रयागराज में लगने वाला महाकुंभ सबसे भव्य होता है। इस मेले में लोग अपने पापों का प्रक्षालन करने और मोक्ष प्राप्ति के लिए गंगा में स्नान करने आते हैं।
महाकुंभ का शाब्दिक अर्थ ‘घड़ा’ होता है, और यह मेला ऋषियों के समय से ही आयोजित होता आ रहा है। कुंभ मेला में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
महाकुंभ 2025 के शाही स्नान:
साल 2025 का महाकुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित होगा। इसका आयोजन 13 जनवरी को पूर्णिमा से शुरू होगा और इसका समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर होगा। महाकुंभ मेला के दौरान छह शाही स्नान होंगे, जो इस प्रकार हैं:
1. पहला शाही स्नान: 13 जनवरी 2025 (पूर्णिमा)
2. दूसरा शाही स्नान: 14 जनवरी 2025 (मकर संक्रांति)
3. तीसरा शाही स्नान: 29 जनवरी 2025 (मौनी अमावस्या)
4. चौथा शाही स्नान: 2 फरवरी 2025 (बसंत पंचमी)
5. पांचवां शाही स्नान: 12 फरवरी 2025 (माघ पूर्णिमा)
6. आखिरी शाही स्नान: 26 फरवरी 2025 (महाशिवरात्रि)
महाकुंभ मेले पर बनने वाला शुभ संयोग:
महाकुंभ मेला के दौरान इस बार विशेष शुभ संयोग बन रहे हैं। इस दिन ‘रवि योग’ का निर्माण होने जा रहा है, जो सुबह 7 बजकर 15 मिनट से शुरू होगा और सुबह 10 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगा। इसी दिन ‘भद्रावास योग’ भी बनेगा, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
महाकुंभ मेले का ऐतिहासिक महत्व:
महाकुंभ मेला समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि एक समय ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र और अन्य देवता कमजोर पड़ गए थे। राक्षसों ने इसका फायदा उठाकर देवताओं पर आक्रमण किया और देवताओं की हार हुई। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने राक्षसों से अमृत निकालने के लिए समुद्र मंथन की सलाह दी। समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला और भगवान इंद्र के पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में उड़ गए। राक्षसों ने इस अमृत कलश को छीनने के लिए देवताओं से 12 दिनों तक युद्ध किया।
समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की कुछ बूंदें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में गिरी थीं, इसलिए इन चार स्थानों पर महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
इस प्रकार, महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति, धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है, और यह एक ऐतिहासिक अवसर होता है जब लाखों लोग मिलकर इस विशाल धार्मिक आयोजन में भाग लेते हैं।
– कार्तिक