महाकुंभ के दौरान संगम जल, जहां लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन पवित्र स्नान कर रहे हैं, में अत्यधिक मात्रा में मल और कुल कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया पाए गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा 3 फरवरी को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) को प्रस्तुत एक गुणवत्ता मूल्यांकन रिपोर्ट में बताया गया कि गंगा में कॉलिफॉर्म स्तर मानक से 1,400 गुना और यमुनाजी में 660 गुना अधिक पाए गए।
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गुणवत्ता मूल्यांकन रिपोर्ट
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि CPCB द्वारा 12, 13, 14, 15 और 19 जनवरी को लिए गए जल नमूनों में गंगा में कुल कॉलिफॉर्म स्तर 700,000 MPN/100ml और यमुनाजी में 330,000 MPN/100ml तक पहुंच गए थे। यह स्तर CPCB के मानकों से बहुत अधिक था, जिनके अनुसार किसी भी जलाशय में स्नान करने के लिए कुल कॉलिफॉर्म स्तर 500 MPN/100ml से अधिक नहीं होना चाहिए।
इस स्थिति के बारे में एनजीटी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह न केवल एनजीटी के पिछले आदेशों की अवहेलना है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। एनजीटी ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) से इस मामले पर जवाब तलब किया और इस मामले में कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया।
एनजीटी का आदेश: यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जवाब देने के लिए तलब
एनजीटी ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव और राज्य की संबंधित जल गुणवत्ता बनाए रखने वाली एजेंसी को 19 फरवरी को वर्चुअल सुनवाई में पेश होने का निर्देश दिया। एनजीटी ने दिसंबर 2024 में CPCB और UPPCB से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि गंगा और यमुनाजी में अपशिष्ट जल का प्रवाह न हो, ताकि पवित्र स्नान करने आए श्रद्धालुओं को कोई स्वास्थ्य समस्या न हो।
पानी में उच्च स्तर का प्रदूषण: जल जनित रोगों का खतरा
संगम जल में मल बैक्टीरिया के उच्च स्तर से जल जनित रोगों का खतरा बढ़ गया है, और अत्यधिक जैविक प्रदूषण के कारण नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान हो सकता है। इस संदर्भ में एनजीटी ने यूपी सरकार से सख्त कदम उठाने की आवश्यकता जताई है।
संगम जल की गुणवत्ता की नियमित निगरानी पर जोर
एनजीटी ने CPCB और UPPCB को आदेश दिया था कि वे संगम जल की नियमित निगरानी करें और यह सुनिश्चित करें कि नदी में अवैध सीवेज का प्रवाह न हो। CPCB द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, नदी के पानी की गुणवत्ता निर्धारित मानकों के अनुसार नहीं है। यह स्थिति स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन रही है।
नदी के पानी की गुणवत्ता की चिंता
गंगा और यमुनाजी के पानी में अत्यधिक प्रदूषण ने न केवल स्थानीय निवासियों के लिए, बल्कि वहां आने वाले लाखों तीर्थयात्रियों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य संकट पैदा कर दिया है। एनजीटी के आदेशों के बाद, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तत्काल कदम उठाने होंगे ताकि पानी की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके और तीर्थयात्रियों को सुरक्षित स्नान का अवसर मिल सके।
महाकुंभ के दौरान संगम जल में प्रदूषण के स्तर ने एक बार फिर नदी संरक्षण की आवश्यकता को उजागर किया है। यह रिपोर्ट न केवल धार्मिक श्रद्धा से जुड़ी है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी अहम है।
कार्तिक
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