Friday, January 3, 2025

भारत में प्लास्टिक संकट: एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती

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(फ़ोटो स्रोत – WORLD BANK)

भारत में प्लास्टिक प्रदूषण एक बढ़ती हुई चिंता का विषय बन गया है, जो पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और जैव विविधता के लिए गंभीर खतरे का कारण बन रहा है। देश में प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग और उसे उचित तरीके से नष्ट न करने की प्रक्रिया ने इसे एक विशाल संकट में बदल दिया है।

भारत में प्लास्टिक संकट के मुख्य कारण

1. अत्यधिक प्लास्टिक का उपयोग: भारत में प्लास्टिक उत्पादों का अत्यधिक उपयोग बढ़ता जा रहा है, खासकर सिंगल-यूज़ प्लास्टिक जैसे पैकेजिंग, बैग्स, और डिस्पोजेबल वस्त्रों का। इनका अधिकांश हिस्सा कचरे में चला जाता है, जिससे प्रदूषण फैलता है।

2. कचरे का सही तरीके से निपटान नहीं होना: भारत में कई शहरों में प्लास्टिक कचरे का सही तरीके से निपटान नहीं किया जाता। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग सुविधाओं की कमी और कचरे के प्रबंधन की अपर्याप्त व्यवस्थाओं के कारण यह प्रदूषण बढ़ता है।

3. सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर निर्भरता: यह समस्या विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में गंभीर है, जहां लोग प्लास्टिक बैग्स, पैकिंग और अन्य डिस्पोजेबल वस्तुओं का अत्यधिक इस्तेमाल करते हैं।

प्लास्टिक संकट का पर्यावरण पर प्रभाव:

1. जलवायु परिवर्तन: प्लास्टिक का उत्पादन और निपटान जलवायु परिवर्तन को बढ़ाता है, क्योंकि प्लास्टिक उत्पाद बनाने में भारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, और इसका जलने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।

2. जलीय जीवन को नुकसान: नदी, समुद्र और झीलों में प्लास्टिक कचरे की भरमार से जलजीवों की जान को खतरा होता है। कई समुद्री जीवों और पक्षियों के लिए यह खतरनाक साबित होता है, जो प्लास्टिक कोअपना भोजन समझ कर खा लेते हैं।

3. मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट: प्लास्टिक कचरा जब मिट्टी में समाता है, तो यह उसकी गुणवत्ता को खराब कर देता है, जिससे कृषि उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ता है।

भारत सरकार की पहल:

1. सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध: भारत सरकार ने 2022 से सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर पूर्णप्रतिबंध लगाने की योजना बनाई थी, जिसके तहत प्लास्टिक बैग्स, कप्स और प्लेट्स के उत्पादन और उपयोग को रोकने के प्रयास किए गए।

2. प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन: विभिन्न राज्य सरकारें प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिए स्वच्छ भारत अभियान और प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट कार्यक्रम चला रही हैं। 

3. रीसाइक्लिंग और पुन: उपयोग: सरकार और कई एनजीओ रीसाइक्लिंग और पुन: उपयोग के महत्व पर जोर दे रहे हैं, ताकि प्लास्टिक के निस्तारण के लिए नए तरीके विकसित किए जा सकें।

समाधान और सुझाव:

1. नवीकरणीय सामग्री का उपयोग: प्लास्टिक के विकल्प के रूप में बांस, कपास, या अन्य जैविक सामग्रियों का उपयोग बढ़ाना चाहिए। 

2. सामाजिक जागरूकता: लोगों को प्लास्टिक के खतरों और इसके निपटान के सही तरीकों के बारे में जागरूक करना महत्वपूर्ण है।

3. सख्त कानून और प्रवर्तन: प्लास्टिक पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, और कचरे के प्रबंधन में सुधार के लिए ठोस उपायों को लागू करना जरूरी है।

भारत में प्लास्टिक संकट गंभीर रूप से बढ़ रहा है, लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार और समाज दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है। इसके समाधान के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण सुनिश्चित कर सकें।

– कार्तिक

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