गिलियन-बैरे सिंड्रोम से पुणे में दूसरी मौत, 127 केस दर्ज

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पुणे में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) से जुड़ी दूसरी मौत की खबर सामने आई है। अब तक इस बीमारी के कुल 127 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग ने 200 ब्लड सैंपल राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV) पुणे को भेजे हैं, ताकि इस बीमारी के कारणों और उपचार के तरीके पर और अधिक शोध किया जा सके।

क्या है गिलियन-बैरे सिंड्रोम?

गिलियन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही नर्व्स पर हमला करता है। इस बीमारी के दौरान शरीर में अचानक कमजोरी, सुन्नता और मांसपेशियों में दर्द होता है, जिससे व्यक्ति को चलने-फिरने में कठिनाई होती है। कभी-कभी यह स्थिति इतनी गंभीर हो सकती है कि व्यक्ति को सांस लेने में भी मुश्किलें उत्पन्न हो जाती हैं।

बीमारी के लक्षण

गिलियन-बैरे सिंड्रोम के लक्षण अक्सर अचानक सामने आते हैं। यह बीमारी पहले हाथों और पैरों में झुनझुनी और कमजोरी से शुरू होती है। धीरे-धीरे यह लक्षण फैलकर व्यक्ति के शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंच सकते हैं और लकवे में बदल सकते हैं। प्रारंभिक लक्षणों में शामिल हैं:

• हाथों, पैरों, टखनों या कलाई में झुनझुनी।

• पैरों में कमजोरी।

• चलने में दिक्कत, सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी।

• बोलने, चबाने और खाना निगलने में कठिनाई।

• आंखों की डबल विजन या आंखों को हिलाने में दिक्कत।

• मांसपेशियों में तेज दर्द।

• पेशाब और मल त्याग में समस्या।

• सांस लेने में कठिनाई।

GBS के कारण

डॉक्टरों के अनुसार, GBS का मुख्य कारण बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण होते हैं, जो शरीर की इम्यूनिटी को कमजोर कर देते हैं। इनमें से अधिकतर मामलों में मरीज पहले किसी वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण का शिकार होते हैं, जैसे कि श्वसन संक्रमण या आंतों की बीमारियां। इन्फेक्शन के बाद, शरीर का इम्यून सिस्टम अत्यधिक प्रतिक्रिया करता है और अपनी ही नर्व्स पर हमला करना शुरू कर देता है, जिसके कारण यह गंभीर स्थिति उत्पन्न होती है।

इससे जुड़ी मौतों का जोखिम

हालांकि गुलेन बैरी सिंड्रोम से मौत का खतरा बहुत कम होता है, लेकिन अगर इलाज में देरी हो जाए तो यह गंभीर हो सकता है। पुणे में हाल ही में हुई मौत ने इस बीमारी के प्रति आम जनता में चिंता बढ़ा दी है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि अधिकतर मरीजों को इलाज से पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। GBS से जुड़ी मौतों की दर बहुत कम है और इसे ठीक किया जा सकता है, बशर्ते समय पर इलाज मिल जाए।

बीमारी की जांच और उपचार

GBS के मामलों की पहचान करने के लिए डॉक्टरों द्वारा नर्व्स की जांच, मांसपेशियों की क्षमता का परीक्षण और कुछ विशेष रक्त परीक्षण किए जाते हैं। इसके अलावा, मरीज की स्थिति को देखते हुए डॉक्टर समय पर इलाज का निर्णय लेते हैं, जिसमें इम्यून ग्लोबुलिन थेरेपी (IVIG) और पल्स थेरेपी शामिल हो सकती है।

क्या महामारी का खतरा है?

डॉक्टरों के अनुसार, गिलियन-बैरे सिंड्रोम महामारी का रूप नहीं ले सकता है। यह बीमारी अधिकतर वायरल या बैक्टीरियल संक्रमणों के कारण होती है और यह व्यक्ति-से-व्यक्ति नहीं फैलती। हालांकि, डॉक्टर यह भी बताते हैं कि समय रहते इलाज मिलने से अधिकांश मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।

स्वास्थ्य विभाग की चेतावनी

स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी को लेकर लोगों से घबराने की बजाय सतर्क रहने की अपील की है। उन्होंने बताया कि अगर किसी को GBS के लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि इलाज शुरू किया जा सके और गंभीर स्थिति से बचा जा सके।

गिलियन-बैरे सिंड्रोम एक गंभीर और दुर्लभ बीमारी है, लेकिन अगर इसका समय पर उपचार किया जाए, तो मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। पुणे में इसके मामलों में वृद्धि के बाद, स्वास्थ्य विभाग ने अतिरिक्त सतर्कता बरतने की सलाह दी है और NIV पुणे को भेजे गए ब्लड सैंपल्स से बीमारी के कारणों पर और अध्ययन किया जा रहा है।

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