नई दिल्ली, 3 जून (PTI): दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग (PWD) ने अपने सामान्य अनुबंध शर्तों (General Conditions of Contract) से मध्यस्थता (Arbitration) क्लॉज हटा दिया है, ताकि बढ़ते वित्तीय नुकसान को कम किया जा सके।
नई शर्तों के अनुसार, अब PWD और किसी प्राइवेट ठेकेदार के बीच विवाद की स्थिति में मामला सिर्फ अदालत में ही सुलझेगा।
PWD मंत्री प्रवेश वर्मा ने कहा, “हमारे नए टेंडरों से मध्यस्थता क्लॉज हटा दिया गया है। पहले इसका उद्देश्य मुकदमेबाजी के बजाय विवादों को जल्दी सुलझाना था, लेकिन ज्यादातर मामलों में सरकार को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा।”
उन्होंने बताया कि बरापुल्ला फेज-3 प्रोजेक्ट में सरकार को लगभग 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, क्योंकि PWD ने मध्यस्थता के आदेश के खिलाफ अपील नहीं की और प्राइवेट कंपनी को फायदा हुआ।
पिछले साल एलजी वी के सक्सेना ने कहा था कि 964 करोड़ रुपये के टेंडर के मुकाबले सरकार को बरापुल्ला फेज-3 प्रोजेक्ट के लिए 1,326.3 करोड़ रुपये चुकाने पड़ेंगे।
PWD को हाल के वर्षों में कई कानूनी मामलों का सामना करना पड़ा है, जिनमें ज्यादातर प्रोजेक्ट्स में देरी के कारण निर्माण लागत बढ़ गई और सरकार पर अतिरिक्त बोझ आ गया।
2023 में तत्कालीन PWD मंत्री आतिशी ने भी विभाग में बड़ी संख्या में मध्यस्थता मामलों के कारण सरकारी खजाने पर बढ़ते बोझ का संज्ञान लिया था और अधिकारियों को ऐसी स्थिति दोबारा न हो, इसके लिए विभागीय कामकाज में बदलाव के निर्देश दिए थे।
फिलहाल, PWD के पास लगभग आधा दर्जन मध्यस्थ (arbitrators) पैनल में हैं, जो उनके कानूनी मामलों को देखते हैं। नियमों के अनुसार, पैनल में शामिल किसी मध्यस्थ के पास एक समय में PWD के पांच से ज्यादा मामले नहीं हो सकते।
भारत में मध्यस्थता एक वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) विधि है, जिसमें पक्षकार अदालत के बाहर किसी तटस्थ तीसरे पक्ष (arbitrator) के जरिए विवाद सुलझाने पर सहमत होते हैं। यह प्रक्रिया आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 द्वारा संचालित होती है।