मार्को रुबियो ने हाल ही में घोषणा की कि वह 20-21 फरवरी को जोहान्सबर्ग में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेंगे। इस सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका मेज़बानी कर रहा है, और अमेरिकी सचिव ने इसकी मेज़बानी के खिलाफ तीखी आलोचना की है।
आर्टिकल में –
सचिव मार्को रुबियो
रुबियो का कहना है कि दक्षिण अफ्रीका अपनी भूमि सुधार नीति के तहत “संपत्ति की जब्ती” कर रहा है, जो उनके अनुसार पूरी तरह से गलत है। उनका यह भी कहना था कि जी20 सम्मेलन का उपयोग “सॉलिडैरिटी, समानता और स्थिरता” जैसे मुद्दों को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है, जिनका अमेरिका से कोई संबंध नहीं है।
रुबियो ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका कार्य केवल अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देना है, न कि ऐसे देशों के साथ समय बर्बाद करना जो “अमेरिका विरोधी” विचारधारा को बढ़ावा देते हैं। उनका कहना था कि इस तरह के देशों को मान्यता देना केवल अमेरिकी करदाताओं के पैसे की बर्बादी होगी।
ट्रंप का बयान
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी दक्षिण अफ्रीका की भूमि सुधार नीति पर हमला किया है। ट्रंप ने यह आरोप लगाया कि दक्षिण अफ्रीका ने अपनी भूमि पर कब्जा करने के लिए विभिन्न नीतियाँ लागू की हैं और इससे कुछ वर्गों के साथ अत्याचार हो रहे हैं। उन्होंने ट्विटर पर कहा, “दक्षिण अफ्रीका अपनी ज़मीन छीन रहा है और कुछ वर्गों के साथ बहुत बुरा व्यवहार कर रहा है।” ट्रंप ने यह भी कहा कि उनकी सरकार भविष्य में दक्षिण अफ्रीका को कोई भी वित्तीय सहायता नहीं देगी, यदि ये नीतियां जारी रहती हैं।
दक्षिण अफ्रीका का पक्ष
दूसरी ओर, दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने ट्रंप के आरोपों का कड़ा खंडन किया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार भूमि सुधारों को लागू करने में पूरी तरह से पारदर्शी है और यह कदम अपार्थेड के दौरान हुई असमानताओं को दूर करने के लिए जरूरी है। रामफोसा ने यह भी कहा कि उनकी सरकार इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ चर्चा करने के लिए तैयार है और वे अपनी भूमि नीति के बारे में पूरी जानकारी देने के लिए तैयार हैं।
दक्षिण अफ्रीका में अधिकांश भूमि आज भी सफेद लोगों के पास है, जबकि काले दक्षिण अफ्रीकियों को अपार्थेड शासन के दौरान उनकी ज़मीन से वंचित कर दिया गया था। भूमि सुधार का उद्देश्य इन ऐतिहासिक गलतियों को सुधारना और काले लोगों को भूमि का उचित हिस्सा देना है। हालांकि, इस नीति के खिलाफ कई तरह के विवाद उठे हैं और इसके क्रियान्वयन को लेकर भी कई सवाल हैं।